कल की बात है कक्षा नोवीं में Diversity in living organism पढ़ा रहा था। तब मम्मलिया वर्ग के बारे में बता रहा था कि हम भी इसी वर्ग में आते है क्योंकि हम अपने बच्चों को दूध पिलाते है।
तब एक विद्यार्थी कक्षा में खड़ा हुआ और कहने लगा सर कबूतरी भी अपने बच्चों को दूध पिलाती है वो फिर इस वर्ग में क्यों नही आती। मै हैरान था कि ये जानकारी इसे कैसे है कि कबूतरी भी अपने बच्चों को दुष पिलाती है।
बच्चों के ये जानकारी तो होती है कि पक्षी अंडे देते है और उन्हें सेकते है पर कबूतरी की अपने बच्चे को दूध पिलाने वाली जानकारी तो बहुत ही कम लोगों को होती है। मैंने उससे पूछा कि आपको ये किसने बताया कि कबूतरी अपने बच्चे को दूध पिलाती है तो उसने बताया कि ये बात उसके दादा जी ने उसे बताई है।
अब मेरी बारी थी इस बात को डिटेल में बताना था। मुझे ये जानकारी थी कि कबूतरी अपने बच्चों को दूध पिलाती है पर उसके शरीर में कोई मेमरी ग्रन्थि नही होते दूसरा उसके पंख होते है इसलिए तो वो एवी वर्ग में आते है।
कबूतरी ही नही फमिंगो व पेंगुइन भी अपने बच्चों को दूध पिलाते है।
कबूतरी के गले मे एक थैली में दूध बनता है। ये थैली आहार नली की एक एक्सटेंशन होती है। इसी में ही दूध एकत्रित होता है। दूध तरल न हो कर पनीर जैसा ठोस होता है। परन्तु जैसे महिला में प्रोलैक्टिन दूध की बनने की प्रकिया को नियंत्रित करता है ऐसे ही कबूतरी में भी यही हार्मोन कार्य करता है।
कबूतरी के शरीर मे ये दूध अंडे से बच्चे के निकलने से एक सप्ताह पहले बनने लगता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस सप्ताह कबूतरी कुछ नही ग्रहण करती वो डरती है कि कहीं इस दूध में वो खाद्य पदार्थ न चला जाये जो बच्चा पचा न पाए।
सच मे मां का बलिदान हर जीव में देखने को मिलता है। कबूतरी दो सप्ताह तक अपने बच्चे को यही दूध देती है। इसे क्रॉप मिल्क कहा जाता है।
सुनील अरोड़ा ।
पीजीटी रसायन विज्ञान
9416323860
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